प्रतापगढ़, 20 मई 2025। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के कुंडा क्षेत्र में भ्रष्टाचार का एक ऐसा घिनौना चेहरा सामने आया है, जो हर उस इंसान को झकझोर देगा जो सिस्टम पर भरोसा करता है। विकास खंड कालाकांकर की कडरो ग्राम पंचायत में मनरेगा के नाम पर करोड़ों रुपये की लूट का खुलासा करने वाले साबिर हुसैन और उनके परिवार को अब अपनी जान और जमीन बचाने के लिए गांव छोड़कर कानपुर में शरण लेनी पड़ रही है। यह कहानी न सिर्फ भ्रष्टाचार की है, बल्कि उस सिस्टम की भी है, जो सच्चाई की आवाज को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ता।
साबिर हुसैन ने जब मनरेगा में हुए भ्रष्टाचार की शिकायत जिलाधिकारी से की, तो उम्मीद थी कि इंसाफ होगा। लेकिन यह क्या? जांच के नाम पर सिर्फ खानापूरी हुई! भ्रष्टाचारी और जांच अधिकारी एक हो गए, और नतीजा? साबिर और उनके चार भाइयों को न सिर्फ जान का खतरा मोल लेना पड़ा, बल्कि उनकी पुश्तैनी जमीन पर भी भ्रष्टाचारियों ने कब्जा जमा लिया। यह है यूपी का ‘विकास मॉडल’, जहां सच बोलने की सजा है घर-बार छोड़कर भागना!
साबिर ने आरटीआई के जरिए खुलासा किया था कि कडरो ग्राम पंचायत में बिना काम कराए मनरेगा के तहत करोड़ों रुपये का सरकारी धन हड़प लिया गया। कागजों में सड़कें बनीं, नालियां बनीं, लेकिन हकीकत में कुछ भी नहीं! जब साबिर ने इस लूट का पर्दाफाश किया, तो भ्रष्टाचारियों ने उनकी आवाज दबाने के लिए हर हथकंडा अपनाया। उन पर फर्जी मुकदमे दर्ज कराए गए, धमकियां दी गईं, और आखिरकार उनकी पुश्तैनी जमीन तक छीन ली गई। क्या यही है वह ‘न्याय’ जो सिस्टम वादा करता है?
यह पहली बार नहीं है जब प्रतापगढ़ में मनरेगा घोटाले की बात सामने आई है। हाल ही में लालगंज ब्लॉक में भी फर्जी हाजिरी और गलत तरीके से जॉब कार्ड बनाकर सरकारी धन की बंदरबांट की खबरें उजागर हुई थीं। लेकिन हर बार की तरह, जांच के नाम पर सिर्फ लीपापोती होती है, और सच्चाई को दबाने वालों का बोलबाला रहता है। साबिर हुसैन का मामला इस बात का जीता-जागता सबूत है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सजा और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण मिलता है।
सवाल यह है कि आखिर कब तक चलेगा यह खेल? कब तक साबिर जैसे लोग, जो सच का साथ देते हैं, अपनी जान और जमीन गंवाते रहेंगे? क्या यूपी का प्रशासन इतना पंगु हो चुका है कि भ्रष्टाचारियों के सामने घुटने टेक देता है? यह समय है कि सरकार इस मामले में सख्त कार्रवाई करे। साबिर और उनके परिवार को न सिर्फ सुरक्षा दी जाए, बल्कि उनकी जमीन वापस दिलाई जाए और भ्रष्टाचारियों को सलाखों के पीछे डाला जाए।
प्रतापगढ़ का यह घोटाला एक बार फिर साबित करता है कि मनरेगा जैसी योजनाएं, जो गरीबों के लिए बनी थीं, अब भ्रष्टाचारियों की तिजोरी भरने का जरिया बन चुकी हैं। अगर सिस्टम ने अब भी आंखें नहीं खोलीं, तो साबिर जैसे और लोग अपनी आवाज खो देंगे। यह सिर्फ साबिर की कहानी नहीं, बल्कि उस हर शख्स की पुकार है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना चाहता है।