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मासिक धर्म जैविक और स्वास्थ्य का संकेत : डॉ. संजना अग्रवाल

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रायपुर, 28 मई 2025। ब्लू बर्ड फाउंडेशन ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2025 पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उददेश्य मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति महिलाओं को जागरूक करना रहा। ब्लू बर्ड फाउंडेशन की डायरेक्टर श्रीमती सुधा वर्मा और होटल पाम क्लब इन एवं रूफटॉप वेलनेस की संचालिका श्रीमती सोना काले द्वारा संयुक्त रूप से पैनल चर्चा और सम्मान समारोह आयोजित किया गया।

इस वर्ष के कार्यक्रम की थीम बाधाएं तोड़ना, आवाज़ों का उत्सव मनाना रखा गया था। आयोजन में बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. वर्णिका शर्मा और छत्तीसगढ़ राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष अमरजीत सिंह छाबड़ा विशेष रूप से उपस्थित थे।

छत्तीसगढ़ की पहली महिला पैड निर्माता श्रीमती सुधा वर्मा ने कहा, हमारा उद्देश्य है जागरूकता फैलाना, मासिक धर्म को लेकर संवाद को सामान्य बनाना, और यह सुनिश्चित करना कि कोई भी लड़की अपने शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया को लेकर शर्म महसूस न करे। श्रीमती सोना काले ने कहा कि शारीरिक स्वस्थ के साथ मेन्टल स्वस्थ पर चर्चा होनी जरुरी है।

मासिक धर्म पर किसने क्या कहा

पैनल चर्चा में श्री नारायण हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ, डॉ. संजना अग्रवाल ने मासिक धर्म को “अशुद्ध” मानने की गलतफहमी को दूर किया। उन्होंने बताया कि यह जैविक और स्वास्थ्य का संकेत है। ग्रामीण और शहरी महिलाएं अब टैम्पोन और मेंस्ट्रुअल कप को अपनाने लगी हैं।

डॉ. उज्ज्वला वर्मा, त्वचा रोग विशेषज्ञ ने लंबे समय तक सैनिटरी पैड इस्तेमाल करने के नुकसान बताए। त्वचा संक्रमण से बचने हेतु समय-समय पर उत्पाद बदलने पर बल दिया। मासिक धर्म को त्वचा समस्याओं से जोड़ने की भ्रांति को भी तोड़ा।

डॉ. निमिषा काले, स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने विद्यालयों में मासिक धर्म शिक्षा की वकालत की, जिससे शुरू से ही वर्जनाओं को मिटाया जा सके। मिस आस्था वर्मा, सह-संस्थापक, अमानत ने कमज़ोर वर्ग की लड़कियों पर मिथकों के प्रभाव को रेखांकित किया, विशेषकर स्कूल न जाना। परिवार और समुदाय में खुला संवाद शुरू करने की बात कही।

श्रीमती स्निग्धा चक्रवर्ती, निदेशक, माँ फाउंडेशन ने बताया कि मासिक धर्म का रक्त गंदा नहीं होता, यह एक स्वाभाविक और स्वच्छ प्रक्रिया है। समुदाय स्तर पर पुरुषों और महिलाओं दोनों को शिक्षित करने की आवश्यकता बताई।

श्रीमती प्रियंका शर्मा, पुलिस निरीक्षक ने बताया कि मिथक मानसिक स्वास्थ्य और आत्मविश्वास को प्रभावित करते हैं, विशेष रूप से पुरुष प्रधान क्षेत्रों में काम करने वाली लड़कियों के लिए। पाठ्यपुस्तकों और व्यवहारिक शिक्षा में अंतर पर प्रकाश डाला।

मिस कामना बावनकर, इस्कॉन प्रचारक ने आंतरिक और बाहरी स्वच्छता दोनों को महत्व दिया। वेदों में मासिक धर्म को निषिद्ध न मानने वाले संदर्भों का उल्लेख किया। मिस निधि काले, विधि छात्रा ने बताया कि महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान किसी भी गतिविधि से वंचित करने का कोई कानूनी आधार नहीं है। मासिक धर्म अधिकारों को मानव अधिकारों के रूप में मान्यता देने की मांग की।

श्रीमती हर्षा साहू, आत्म-रक्षा प्रशिक्षक ने यह मिथक तोड़ा कि लड़कियां मासिक धर्म के दौरान शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं। किसी भी दिन आत्मरक्षा की ट्रेनिंग ली जा सकती है। स्कूलों को खेल और आत्मरक्षा जारी रखने की सलाह दी।

श्रीमती सुनीता जड़वानी, संचालिका, खूबसूरत बुटीक ने आत्मविश्वास और आराम को बढ़ावा देने वाले वस्त्रों को अपनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि यदि हम घरों में काम करने वाली महिलाओं को शिक्षित करें, तो समाज में बदलाव की एक छोटी शुरुआत हो सकती है।

इस अवसर पर स्वास्थ्य, शिक्षा, आत्म-निर्भरता और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया। इनके कार्यों को न केवल सामाजिक प्रभाव के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्वरूप भी सराहा गया।

Ramesh Pandey

मेरा नाम रमेश पाण्डेय है। पत्रकारिता मेरा मिशन भी है और प्रोफेशन भी। सत्य और तथ्य पर आधारित सही खबरें आप तक पहुंचाना मेरा कर्तव्य है। आप हमारी खबरों को पढ़ें और सुझाव भी दें।

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