रायपुर, 2 जून 2025। कभी हालात ऐसे थे कि दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं थी। पड़ोसी बच्चों को खाना खिला रहे थे, स्कूल की फीस भर रहे थे। आंखों में आंसू, दिल में बेबसी, और सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ था। लेकिन आज वही महिला हजारों भूखों का सहारा बन चुकी है। यह कहानी है रायपुर के शैलेन्द्र नगर की रहने वाली शोभा बावनकर की जो एक मां, एक योद्धा, और अब एक समाजसेविका हैं।
साल 2008 से 2014 तक शोभा का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। दो छोटे बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी अकेले उनके कंधों पर थी। उन दिनों बच्चों की आंखों में उम्मीद देख, खाली थाली की चिंता होती थी। लेकिन शोभा ने हार नहीं मानी। संघर्षों के बीच उन्होंने खुद को मजबूत किया और एक वचन लिया- जब भी ऊपरवाला मुझे कुछ देगा, मैं उसका हिस्सा जरूर उन लोगों तक पहुंचाऊंगी, जो आज जैसी स्थिति में होंगे।
समय बदला, और 2014 के बाद धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी। उन्होंने वेलनेस कोच का क्षेत्र चुना और 22 आउटलेट्स की मालिक बन गईं। आज उनके पास खुद का सुंदर बंग्ला है, थार जैसी लक्ज़री गाड़ी है, और समाज में एक पहचान है। लेकिन शोभा को कभी भी इस सफलता का घमंड नहीं हुआ। उन्हें हमेशा उन दिनों की याद रही, जब एक रोटी भी किसी वरदान से कम नहीं लगती थी।
यही कारण है कि 2024 में जब उनके बेटे लक्ष्य ने उन्हें बताया कि वह हनुमान जी का भक्त है और जीवन में कुछ बड़ा करना चाहता है, तो शोभा ने यह अवसर अपने संकल्प को साकार करने के रूप में लिया। उन्होंने बेटी कामिनी और बेटे लक्ष्य के साथ मिलकर रामराज फाउंडेशन की स्थापना की। इस फाउंडेशन का एकमात्र उद्देश्य है- भूखे पेट को भरना, और वह भी प्रसाद के रूप में।

15 दिसंबर 2024 से रामराज फाउंडेशन लगातार गरीब और असहाय लोगों तक भोजन पहुंचा रहा है। शोभा मानती हैं कि जब भोजन भगवान को भोग लग जाता है, तब वह प्रसाद बन जाता है। और जब कोई व्यक्ति प्रसाद ग्रहण करता है, तो उसके जीवन में सिर्फ पेट की भूख ही नहीं, आत्मा की तृप्ति भी होती है।
शोभा की इस सोच ने ही उन्हें इस्कॉन से जोड़ दिया। अब उनका फाउंडेशन जल्द ही इस्कॉन के सहयोग से प्रसादम वितरण करेगा। इस साझेदारी के पीछे उनका उद्देश्य सिर्फ पेट भरना नहीं, बल्कि जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करना भी है।
शोभा के बेटे लक्ष्य और बेटी कामिनी भी उनके इस मिशन में कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। लक्ष्य स्वयं कई बार भोजन वितरण के लिए गाड़ियों में बैठकर बस्तियों में जाता है, लोगों से मिलता है, उन्हें सुनता है और उन्हें भोजन का आदर करना सिखाता है। कामिनी योजना और लॉजिस्टिक्स की जिम्मेदारी संभालती हैं, ताकि कोई भूखा न रहे।
शोभा कहती हैं, भूख एक एहसास है, जिसे सिर्फ वही समझ सकता है जिसने उसे जिया हो। जब बच्चों की आंखों में रोटी की उम्मीद दिखती थी, तब मैंने अपने भीतर एक वचन लिया था। आज जब मैं किसी को मुस्कुराते हुए खाना खाते देखती हूं, तो मुझे लगता है जैसे मेरा हर संघर्ष सफल हो गया।
आज शोभा बावनकर सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं। उन्होंने यह सिखाया कि कठिनाइयां चाहे जितनी भी बड़ी हों, अगर इरादा मजबूत हो, तो वह किसी को भी दूसरों की जिंदगी बदलने वाला बना सकती हैं।
इस कठिन सफर ने उन्हें न सिर्फ एक सफल महिला उद्यमी बनाया, बल्कि एक ऐसी मां, और एक दूत बना दिया है, जो भूख से लड़ते हजारों लोगों के लिए आशा की किरण हैं।
शोभा बावनकर की यह कहानी हर उस व्यक्ति को संबल देती है, जो आज हार मान बैठा है। वह बताती हैं कि अंधेरे में भी रास्ता होता है, बशर्ते आप खुद को जलाना जानते हों। उनकी यह यात्रा साबित करती है कि जीवन की असली सफलता धन में नहीं, बल्कि उस क्षण में है जब आप किसी के जीवन में रोशनी भरते हैं।
अगर हम सभी अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार समाज को थोड़ा-थोड़ा लौटाएं, तो शायद इस दुनिया से भूख, दर्द और अकेलापन खत्म हो सकता है। शोभा बावनकर जैसी कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।