रायपुर, 12 मई 2025। छत्तीसगढ़, जहां मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सुशासन का ढोल पीटते नहीं थकते, जहां सुशासन अभिसरण जैसे भारी-भरकम नामों से नए विभाग गढ़े जा रहे हैं, वहां मानव अधिकार आयोग के मुख्यद्वार पर मेडिकल कचरे का ढेर लग रहा है। यह कोई मामूली कचरा नहीं, बल्कि राज्य के नामी डीकेएस अस्पताल का खतरनाक मेडिकल कचरा है, जो धड़ल्ले से आयोग के दरवाजे पर फेंका जा रहा है। यह वही जगह है, जहां से होकर हर दिन सैकड़ों लोग गुजरते हैं, और यह वही आयोग है, जो मानव अधिकारों की रक्षा का दम भरता है। लेकिन इस घिनौने कृत्य पर न तो अस्पताल प्रशासन को शर्मिंदगी है, न ही सरकार को कोई फिक्र।
डीकेएस अस्पताल, जो कभी छत्तीसगढ़ की शान माना जाता था, आज अपनी लापरवाही से सुर्खियों में है। अस्पताल की प्रभारी डीन डॉ. शिप्रा की नाक के नीचे यह कचरा न केवल आयोग के दरवाजे पर, बल्कि आम रास्ते पर भी फेंका जा रहा है। क्या डॉ. शिप्रा को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं कि मेडिकल कचरा कितना खतरनाक हो सकता है? सुई, सीरिंज, खून से सने बैंडेज, और न जाने क्या-क्या, ये सब न केवल पर्यावरण के लिए खतरा हैं, बल्कि लोगों की सेहत के लिए भी घातक हैं। फिर भी, अस्पताल प्रशासन की नींद नहीं टूट रही। क्या यही है वह सुशासन, जिसका दावा सरकार हर मंच से करती है?
मानव अधिकार आयोग, जिसका काम है लोगों के अधिकारों की हिफाजत करना, आज, वह खुद इस गंदगी का शिकार बन चुका है। आयोग के कर्मचारी और आगंतुक रोज इस कचरे के ढेर से होकर गुजरते हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। क्या आयोग के अधिकारी इतने लाचार हैं कि वे अपने ही कार्यालय के बाहर की गंदगी नहीं हटा सकते? या फिर यह सरकार की उदासीनता का नमूना है, जो हर तरफ दिखाई दे रही है?
यह मामला केवल कचरे का नहीं, बल्कि व्यवस्था की नाकामी का है। मेडिकल कचरे का निपटान सख्त नियमों के तहत होना चाहिए। बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट नियम, 2016 के तहत, अस्पतालों को कचरे को अलग करना, उसका सुरक्षित निपटान करना अनिवार्य है। लेकिन डीकेएस अस्पताल इन नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है। क्या पर्यावरण मंत्रालय और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सो रहे हैं? या फिर यह सब सत्ताधारी नेताओं के संरक्षण में हो रहा है?
स्थानीय लोगों का गुस्सा अब फूट रहा है। मोहल्ले की रीता देवी कहती हैं, हमारे बच्चे इस रास्ते से स्कूल जाते हैं। अगर कोई सुई चुभ जाए तो क्या होगा? वहीं, आयोग के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, हमने कई बार शिकायत की, लेकिन कोई सुनता ही नहीं। यह लापरवाही अब लोगों के सब्र का इम्तिहान ले रही है।
सरकार और अस्पताल प्रशासन की इस चुप्पी से सवाल उठता है-क्या छत्तीसगढ़ में सुशासन सिर्फ कागजी दावा है? अगर मानव अधिकार आयोग के दरवाजे पर ही कचरे का ढेर लग सकता है, तो आम आदमी के अधिकारों की रक्षा कौन करेगा? मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को अब जवाब देना होगा। क्या वे इस मामले में सख्त कार्रवाई करेंगे, या फिर सुशासन का उनका नारा सिर्फ चुनावी जुमला बनकर रह जाएगा? जनता जवाब मांग रही है, और उसे जल्द चाहिए।